Dhadak 2

Dhadak 2 Movie Review: प्यार, जाति और विद्रोह की कहानी दोबारा?

Dhadak 2

नाम सुनते ही ज़ेहन में 2018 की वो मासूम सी प्रेम कहानी ताज़ा हो जाती है, जिसमें ईशान खट्टर और जाह्नवी कपूर ने युवा प्रेम को एक कड़वे सामाजिक यथार्थ से टकराते हुए परदे पर जिया था। अब जब करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन लेकर आई है ‘Dhadak 2’, तो सवाल उठना लाज़मी है  क्या यह फिल्म उसी भावनात्मक गहराई को छूती है, या फिर यह सिर्फ़ पहले की कामयाबी का एक दोहराव भर है?

Dhadak 2

इस फिल्म में लक्ष्य लालवानी और शनाया कपूर की जोड़ी को लॉन्च किया गया है। जहाँ एक ओर यह दोनों नए चेहरे हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दर्शकों की अपेक्षाएँ पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ चुकी हैं।

कहानी की झलक एक बार फिर प्रेम बनाम समाज

Dhadak 2 की कहानी एक बार फिर एक प्रेम कहानी है लेकिन इसका कैनवास पहले से कहीं ज़्यादा सामाजिक और राजनीतिक है। इस बार प्रेम कहानी सिर्फ़ दो दिलों के बीच नहीं, बल्कि दो अलग-अलग सामाजिक वर्गों, जातियों और सोच के बीच की टकराहट को लेकर सामने आती है।

अर्जुन (लक्ष्य लालवानी) एक नीची जाति का लड़का है जो अपने कॉलेज में टॉपर है, आत्मविश्वास से भरा हुआ और स्वाभिमानी भी। वहीं पलवी (शनाया कपूर) एक राजनीतिक परिवार की बेटी है उच्च जाति से, लेकिन संवेदनशील और खुली सोच वाली। दोनों की मुलाक़ात कॉलेज के एक सामाजिक वाद-विवाद कार्यक्रम में होती है, जहाँ बहस जातिवाद पर हो रही होती है  और वहीं से शुरू होती है एक ‘धड़क’ जैसी कहानी।

लेकिन इस बार यह सिर्फ़ प्रेम की लड़ाई नहीं है। इसमें शामिल हो जाते हैं राजनीतिक षड्यंत्र, मीडिया ट्रायल, सोशल मीडिया की सनक, और एक ऐसा सामाजिक विभाजन जो 2025 में भी उतना ही तीखा है जितना कभी था।

Dhadak 2

अभिनय लक्ष्य और शनाया की पहली परीक्षा

लक्ष्य लालवानी

टेलीविज़न से फिल्म में कदम रखने वाले लक्ष्य का अभिनय इस फिल्म की जान है। उन्होंने अर्जुन के किरदार में वो गहराई दी है जिसकी उम्मीद शायद किसी नए अभिनेता से नहीं की जाती। उनकी आँखों में आत्मविश्वास भी है, विद्रोह भी और प्रेम भी। खासकर जब वो सिस्टम से लड़ते हैं  कोर्ट रूम में, या मीडिया से बहस करते हैं तब उनके डायलॉग डिलीवरी और बॉडी लैंग्वेज दोनों ही प्रभावित करते हैं।

शनाया कपूर

शनाया की यह पहली फिल्म है और उन्होंने एक सीमित लेकिन भावुक किरदार को अच्छी तरह से निभाया है। हालाँकि कुछ जगहों पर उनकी संवाद अदायगी थोड़ी सपाट लगती है, लेकिन उनकी स्क्रीन प्रेजेंस में संभावनाएं दिखती हैं। खासकर अर्जुन के परिवार से मिलने का दृश्य और कोर्ट के आखिरी मोनोलॉग में उनका काम अच्छा है।

निर्देशन शशांक खेतान की शैली का विस्तार या दोहराव?

शशांक खेतान, जो पहली ‘धड़क’ के लेखक भी थे, इस बार निर्देशन की बागडोर भी संभालते हैं। उन्होंने इस बार कथानक को और अधिक यथार्थवादी और सामाजिक मुद्दों के करीब लाने की कोशिश की है।

फिल्म की शुरुआत में ही यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि यह कहानी सिर्फ़ प्रेम की नहीं है, यह समाज से संघर्ष की कहानी है। शशांक ने लोकेशन के चयन, संवादों और सामाजिक माहौल को दिखाने में गहराई बरती है खासकर छोटे शहर की राजनीति, जातिगत हिंसा और सोशल मीडिया के असर को दर्शाना उनकी पकड़ को दर्शाता है। लेकिन एक कमी यह है कि फिल्म का मध्य भाग थोड़ा लंबा और स्लो महसूस होता है। वहां दर्शकों की पकड़ थोड़ी ढीली हो सकती है।

संगीत और बैकग्राउंड स्कोर

पहली ‘धड़क’ की सबसे बड़ी यूएसपी उसका संगीत था। इस बार संगीत दिया है अमित त्रिवेदी ने।

  • “तेरी सूरत में क्रांति” नामक गाना प्रेम और विद्रोह दोनों को दर्शाता है।
  • “चुपके से धड़क” एक इमोशनल बैलाड है जो अर्जुन और पलवी के बिछड़ने के वक्त आता है और सीधा दिल को छूता है।
  • बैकग्राउंड स्कोर ने कई जगहों पर दृश्यों की गंभीरता को बढ़ाया है, खासकर कोर्ट और मीडिया ट्रायल वाले सीन्स में।

फिल्म के सामाजिक सन्देश और विचार

Dhadak 2 सिर्फ़ एक लव स्टोरी नहीं है। यह फिल्म उन विषयों को छूती है जो आज भी समाज में ज्वलंत हैं:

  • जातिवाद और क्लास डिवाइड
  • राजनीतिक हस्तक्षेप और मीडिया ट्रायल
  • सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत आज़ादी
  • महिला की एजेंसी  पलवी का किरदार सिर्फ़ ‘प्रेमिका’ नहीं, बल्कि एक्टिव डिसीजन मेकर भी है।
  • फिल्म यह संदेश देती है कि प्यार अब सिर्फ़ निजी नहीं रहा, वह सामाजिक और राजनीतिक हथियार भी बन चुका है।

कमियाँ

  • फिल्म का पहला हाफ थोड़ा धीमा है।
  • कुछ संवाद क्लिशे लगते हैं  जैसे कि “प्यार ज़ात नहीं देखता” जिसे और गहराई से कहा जा सकता था।
  • शनाया कपूर की डायलॉग डिलीवरी और एक्सप्रेशन में अभी और परिपक्वता की जरूरत है।
  • क्लाइमेक्स थोड़ा जल्दबाज़ी में समेटा गया लगता है।

क्या यह धड़क 1 के लेवल तक पहुंच पाई?

इस सवाल का जवाब सरल नहीं है। ‘धड़क 1’ एक इमोशनल मास अपील वाली फिल्म थी। ‘Dhadak 2 ’ उससे ज्यादा गहरी, लेकिन कम ‘commercial’ है। यह फिल्म उन दर्शकों को ज़्यादा पसंद आएगी जो सिर्फ़ रोमांस नहीं, बल्कि समाज के सवालों से जूझती कहानी देखना पसंद करते हैं। जो लोग ‘फील-गुड’ एंडिंग चाहते हैं, उन्हें शायद इसका क्लाइमेक्स थोड़ा भारी लगे।

देखनी चाहिए या नहीं?

Dhadak 2 एक साहसी फिल्म है। यह वही प्रेम कहानी है, लेकिन नए समय, नए सवालों और नए चेहरे के साथ। अगर आप ऐसी फिल्में पसंद करते हैं जो सामाजिक मुद्दों को उठाती हैं, तो यह फिल्म ज़रूर देखिए। अगर आप लक्ष्य और शनाया के फैन हैं, तो भी यह लॉन्चिंग के लिहाज़ से एक अच्छी फिल्म है।

रेटिंग: 3.5/5

  • कहानी: ⭐⭐⭐⭐
  • अभिनय: ⭐⭐⭐
  • निर्देशन: ⭐⭐⭐
  • संगीत: ⭐⭐⭐⭐
  • समाजिक संदेश: ⭐⭐⭐⭐

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

Q. क्या Dhadak 2 पहले भाग की सीक्वल है?
A. नहीं, यह एक नई कहानी है, लेकिन विषयवस्तु यानी ‘प्यार और जाति’ समान हैं।

Q. क्या फिल्म में सामाजिक मुद्दे अच्छे से उठाए गए हैं?
A. हां, जातिवाद, मीडिया ट्रायल और राजनीति को अच्छी तरह दिखाया गया है।

Q. शनाया कपूर और लक्ष्य का अभिनय कैसा है?
A. लक्ष्य प्रभावी हैं, शनाया में संभावना है लेकिन परिपक्वता की जरूरत है।

Q. क्या यह फैमिली फिल्म है?
A. हां, लेकिन कुछ सीन संवेदनशील हैं, इसलिए पैरेंटल गाइडेंस जरूरी हो सकती है।

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